Submitted by satya on मंगल, 06/21/2016 - 19:03 ८) मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला, हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला, ध्यान किए जा मन में सुमधुर, सुखकर, सुन्दर साकी का; और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला| Book traversal links for मधुशाला (८) ‹ मधुशाला (७) ऊपर मधुशाला (९) ›