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मधुशाला (८)

८)

मुख से तू अविरत कहता जा
मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा
एक ललित कल्पित प्याला,

ध्यान किए जा मन में सुमधुर,
सुखकर, सुन्दर साकी का;

और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको
दूर लगेगी मधुशाला|