माँ!
क्या लिखूँ तुम्हें!
बस शामों-सहर पाया है तुम्हें
अपने ही करीब
कुछ मुसकुराती सी।
एक ऊर्जा सी भर जाती हो तुम।
भीगी पलकों से सोचती हूँ तुम्हें।
मन के एक कोने में हर पल तुम हो!
घर का वो कोना
आज भी याद है मुझे।
आज भी सालती है
वो बिछुड़ने की बेला!
आज भी खड़ी हूँ मैं
कहीं ना कहीं उसी दहलीज़ पर।
तुम्हें आज भी सोचती हूँ मैं
हर पल!
हे प्रभु!
सदा सलामत रहे मेरी माँ!
वो माँ
जो याद आती है शामों-सहर!
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प्रतिमा शुक्ल
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