Submitted by satya on मंगल, 06/21/2016 - 19:02 ७) चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला! 'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला; हिम्मत है न बढूँ आगे को, साहस न फिरूँ पीछे; किंकर्तव्यविमूढ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला| Book traversal links for मधुशाला (७) ‹ मधुशाला (६) ऊपर मधुशाला (८) ›