Submitted by satya on Tue, 06/21/2016 - 18:58 ४) भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला; कभी ना कण भर खाली होगा, लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला| Book traversal links for मधुशाला (४) ‹ मधुशाला (३) Up मधुशाला (५) ›