Submitted by satya on Tue, 06/21/2016 - 18:52 २) प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कबका वार चुका, आज निछावर कर दूंगा मैं तुझपर जग की मधुशाला| Book traversal links for मधुशाला (२) ‹ मधुशाला (१) Up मधुशाला (३) ›