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  • लोकतंत्र है आज देश में,
    बाढ़ आ गयी नेता की.
    नेताओं की बाढ़ देख,
    याद आती द्वापर-त्रेता की.

    राम और कृष्ण नहीं,
    याद आते हैं रावण और शकुनी मामा.
    मातृभूमि का हर के चीर,
    दुशाशन करता हंगामा.

    कुरुक्षेत्र था एक बस तभी,
    आज हुआ देश व्यापी.
    रुधिर बहा करता गलियों में,
    जिसे देख जनता काँपी.

    चुनाव होता है आज इस तरह,
    यूं जनता ने वोट दिए,
    चुनना था जनता को इनमें
    किसने सबसे कम खून किये!

  • ऐ मानव, जो हम ना रहे तो

    तुम कैसे रह पाओगे,

    सावन के झूले छोड़ चुके हो

    और क्या-क्या छुड़ाओगे?

     

    ऑक्सीजन के सिलेंडर

    अपनी पीठों पर लटकाओगे,

    उस सिलेंडर में भरने को

    ऑक्सीजन कहाँ से लाओगे?

     

    तुमने जंगलों को काटकर

    कंक्रीट के जंगल खड़े किए,

    इन जंगलों में सजाने को

    लकड़ी कहाँ से लाओगे?

     

    इतना सोचो हमारे बिना

    आयुर्वेद का मोल कहाँ,

    रोगों के उपचार के लिए

    जड़ी-बूटियाँ कहाँ से पाओगे?

     

    अगर जानवर नहीं रहे तो 

    तुम्हारा भी अस्तित्व कहाँ,

  • दान करे क्या कोई दुनिया में
    जैसा दान किया मैंने,
    दिल का एक टुकड़ा ही दे डाला,
    अहा! कैसा दान किया मैंने.

    जिस बेटी को जब चोट लगी,
    एक टीस उठी मेरे दिल से.
    आज दिल पर पत्थर रखकर,
    उसी बेटी को दान किया मैंने.
    ये कैसा दान किया मैंने!

    बेटी क्या! एक सहारा थी.
    सारे घर का उजियारा थी.
    आज घर में अंधियारा है,
    दिए को दान किया मैंने.
    ये कैसा दान किया मैंने!

  • बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
    तीनहुं लोक भयो अंधियारों।
    ताहि सों त्रास भयो जग को,
    यह संकट काहु सों जात न टारो।
    देवन आनि करी बिनती तब,
    छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो।
    को नहीं जानत है जग में कपि,
    संकटमोचन नाम तिहारो ॥ १ ॥

    बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
    जात महाप्रभु पंथ निहारो।
    चौंकि महामुनि साप दियो तब,
    चाहिए कौन बिचार बिचारो।
    कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
    सो तुम दास के सोक निवारो ॥ २ ॥

    अंगद के संग लेन गए सिय,
    खोज कपीस यह बैन उचारो।
    जीवत ना बचिहौ हम सो जु,

  • दोहा :

     

    श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

    बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। 

    बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

    बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। 

     

    चौपाई :

     

    जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

    जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

     

    रामदूत अतुलित बल धामा।

    अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

     

    महाबीर बिक्रम बजरंगी।

    कुमति निवार सुमति के संगी।।

     

    कंचन बरन बिराज सुबेसा।

    कानन कुंडल कुंचित केसा।।

  • जब वो आतीं खिलती कलियाँ,
    जब वो आतीं खिलते मन,
    जब वो आतीं धक-धक करके,
    हृदय धड़कता, पल-पल हरदम|
    जब वो आतीं, देख-देख कर,
    होता है मन-चित्त प्रसन्न|1|

    काश! वो मुझसे बातें करती,
    भूल जाता मैं सारे ग़म|
    अगर साथ मिले जो उनका,
    लगा दूँ अपना तन, मन, धन|2|

    रहना चाहे कदमों में उनके,
    मृगतृष्णा सा पागल मन,
    रहना चाहे कदमों में उनके,
    मृगतृष्णा सा पागल मन|3|

     

  • सब की खुशियों में शामिल होता मेरा केमरा
    सब के होठो पर मुश्कान लाता मेरा केमरा
    तुम्हारी यादो में जाकता मेरा केमरा
    तुम्हारी हँसी ठिठोली में सामने होता मेरा केमरा

    रोते हुए को हँसता मेरा केमरा
    खुशी के मारे रुलाता मेरा केमरा

    कभी किसी की याद दिलाता
    कभी बिछड़े हुए को मिलाता
    हर खुशियों को समेटता
    हँसी मजाक इठलाती शरारतों को समेटता मेरा केमरा
    सब मानते खुशिया और चुप रहता मेरा केमरा

    पर जब भी केमरे की यादो को देखा
    तो हर पल रुलाता हे मेरा केमरा

    "उसका आज नही होता
    उसका आज कोई नही समझता"

  • एक देश में एक राजा का शाशन था. उसके सभी दरबारी अत्यंत वफादार थे. राजा बहुत दयालु था. उसके शाशन में प्रजा बहुत खुश थी. किन्तु कुछ विरोधी लोग हमेशा राजा के विरुद्ध षड़यंत्र करते रहते थे. ऐसे ही एक षड़यंत्र के तहत प्रजा में राजा के विरुद्ध झूठी भावनाएं भड़का कर उन्होंने राजा को गद्दी से उतार दिया. इसके बाद एक षड़यंत्र के तहत राजा को मरवा दिया गया. राजा का ज्येष्ठ पुत्र उस समय राज-काज सँभालने के लिए बहुत छोटा था. इस लिए राजमाता के संरक्षण में एक वफादार वजीर को गद्दी पर बैठाया गया.

  • सदियों की ठंडी बुझी राख सुगबुगा उठी,
    मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
    दो राह,समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
    सिंघासन खाली करो कि जनता आती है.

    जनता? हाँ, मिट्टी कि अबोध मूरतें वही,
    जाड़े-पाले की कसक सदा रहने वाली,
    जब अंग-अंग में लगे सांप हो चूस रहे,
    तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली.

    लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
    जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है,
    दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
    सिंघासन खाली करो कि जनता आती है.

  • एक बार बैठे-बैठे सोचा,
    चलो बाजार पर नज़र दौडाई जाय.
    चल कर कुछ चीज़ें उठाई जाएँ.
    मैं ज्यों ही बाजार में निकला,
    मेरा मन ना जाने क्यों मचला.

    मैं कुछ आगे बढ़ा तो
    मेरा मन थर्राया.
    सामने कसाइयों का बाज़ार नज़र आया.
    मेरे सामने ही एक कसाई ने गंड़ासा उठाया,

    अचानक मेरे मन में,
    घृणा सी दौड़ गयी.
    मानो दूर आकाश में,
    एक बिजली सी कौंध गयी.

    मैं अपनी घृणा को छिपा ना सका,
    मन कि आवाज़ को अंदर दबा ना सका.
    बिना सोचे समझे,
    मैं कसाई पर गरज पड़ा.
    मानो कसाई पर भादों सा बरस पड़ा.

  • रुक कर पल भर के लिए ज़रा,

    ऐ देश तुम उनको याद करो.

    जो मिटा गए अपनी हस्ती,

    इस देश की लाज बचाने को,

    उनको नहीं तो कम से कम,

    उनकी यादों को आबाद करो.

     

    देश की खातिर मरे मिटे,

    क्या जोशे जुनून था वो.

    जो गिरा गए इस धरती पर,

    पानी नहीं था, खून था वो.

     

    उनके उस खून की लाज रखो,

    यूँ देश को ना बर्बाद करो.

    रुक कर पल भर के लिए ज़रा,

    ऐ देश तुम उनको याद करो.

  • प्रिय मित्रों,
    आज मुझे यह पोस्ट लिखते हुए डर लग रहा है कि लोग पता नहीं इसका क्या अर्थ निकाल लें और इस पर किस प्रकार कि बहस शुरू हो जाये! वैसे यह अपने आप में विडम्बना ही है कि गाँधी के बारे में लिखते हुए किसी को डर लगता हो.
     

  • बहुत लोग विन्डोज़ ८ में एक समस्या का सामना कर रहे हैं. बिंग, न्यूज़ और मौसम जैसे अप्लिकेशन इन्टरनेट से जुड नहीं पाती. मैंने भी इस समस्या का करीब २ महीने तक बिना कोई हल प्राप्त किये सामना किया. विन्डोज़ ८ एक अपेक्षाकृत नया ओ.एस. है, और माइक्रोसॉफ्ट इसके लिए एही हल बताता है की अपने पी.सी. को रिफ्रेश करें. लेकिंग यदि आपके पी.सी. पर बहुत सारे कीमती प्रोग्राम इंस्टाल किये हुए हैं तो आप शायद यह नहीं करना चाहेंगे. मेरे साथ भी येही समस्या थी.