Poem
पौधे की पुकार
ऐ मानव, जो हम ना रहे तो
तुम कैसे रह पाओगे,
सावन के झूले छोड़ चुके हो
और क्या-क्या छुड़ाओगे?
ऑक्सीजन के सिलेंडर
अपनी पीठों पर लटकाओगे,
उस सिलेंडर में भरने को
ऑक्सीजन कहाँ से लाओगे?
तुमने जंगलों को काटकर
कंक्रीट के जंगल खड़े किए,
इन जंगलों में सजाने को
लकड़ी कहाँ से लाओगे?
इतना सोचो हमारे बिना
आयुर्वेद का मोल कहाँ,
रोगों के उपचार के लिए
जड़ी-बूटियाँ कहाँ से पाओगे?
अगर जानवर नहीं रहे तो
उपनाम
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"जब वो आतीं"
जब वो आतीं खिलती कलियाँ,
जब वो आतीं खिलते मन,
जब वो आतीं धक-धक करके,
हृदय धड़कता, पल-पल हरदम|
जब वो आतीं, देख-देख कर,
होता है मन-चित्त प्रसन्न|1|
काश! वो मुझसे बातें करती,
भूल जाता मैं सारे ग़म|
अगर साथ मिले जो उनका,
लगा दूँ अपना तन, मन, धन|2|
रहना चाहे कदमों में उनके,
मृगतृष्णा सा पागल मन,
रहना चाहे कदमों में उनके,
मृगतृष्णा सा पागल मन|3|
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जनतंत्र का का जन्म
सदियों की ठंडी बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह,समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंघासन खाली करो कि जनता आती है.
जनता? हाँ, मिट्टी कि अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा रहने वाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चूस रहे,
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली.
लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंघासन खाली करो कि जनता आती है.
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कसाई
एक बार बैठे-बैठे सोचा,
चलो बाजार पर नज़र दौडाई जाय.
चल कर कुछ चीज़ें उठाई जाएँ.
मैं ज्यों ही बाजार में निकला,
मेरा मन ना जाने क्यों मचला.
मैं कुछ आगे बढ़ा तो
मेरा मन थर्राया.
सामने कसाइयों का बाज़ार नज़र आया.
मेरे सामने ही एक कसाई ने गंड़ासा उठाया,
अचानक मेरे मन में,
घृणा सी दौड़ गयी.
मानो दूर आकाश में,
एक बिजली सी कौंध गयी.
मैं अपनी घृणा को छिपा ना सका,
मन कि आवाज़ को अंदर दबा ना सका.
बिना सोचे समझे,
मैं कसाई पर गरज पड़ा.
मानो कसाई पर भादों सा बरस पड़ा.
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कन्यादान
दान करे क्या कोई दुनिया में
जैसा दान किया मैंने,
दिल का एक टुकड़ा ही दे डाला,
अहा! कैसा दान किया मैंने.
जिस बेटी को जब चोट लगी,
एक टीस उठी मेरे दिल से.
आज दिल पर पत्थर रखकर,
उसी बेटी को दान किया मैंने.
ये कैसा दान किया मैंने!
बेटी क्या! एक सहारा थी.
सारे घर का उजियारा थी.
आज घर में अंधियारा है,
दिए को दान किया मैंने.
ये कैसा दान किया मैंने!
उपनाम
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ऐ देश तुम उनको याद करो!
रुक कर पल भर के लिए ज़रा,
ऐ देश तुम उनको याद करो.
जो मिटा गए अपनी हस्ती,
इस देश की लाज बचाने को,
उनको नहीं तो कम से कम,
उनकी यादों को आबाद करो.
देश की खातिर मरे मिटे,
क्या जोशे जुनून था वो.
जो गिरा गए इस धरती पर,
पानी नहीं था, खून था वो.
उनके उस खून की लाज रखो,
यूँ देश को ना बर्बाद करो.
रुक कर पल भर के लिए ज़रा,
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