१)
मृदु भावों के अंगूरों की
आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से
आज पिलाऊँगा प्याला;
पहले भोग लगा लूँ तेरा,
फिर प्रसाद जग पायेगा;
सबसे पहले तेरा स्वागत
करती मेरी मधुशाला|
श्री हरिवंश राय बच्चन अपनी पुस्तक का प्रारंभ अपने ही अंदाज़ में प्रभु के वंदन से करते हैं|