युवराज का आगमन

Submitted by satya on Sun, 02/14/2016 - 12:55

एक देश में एक राजा का शाशन था. उसके सभी दरबारी अत्यंत वफादार थे. राजा बहुत दयालु था. उसके शाशन में प्रजा बहुत खुश थी. किन्तु कुछ विरोधी लोग हमेशा राजा के विरुद्ध षड़यंत्र करते रहते थे. ऐसे ही एक षड़यंत्र के तहत प्रजा में राजा के विरुद्ध झूठी भावनाएं भड़का कर उन्होंने राजा को गद्दी से उतार दिया. इसके बाद एक षड़यंत्र के तहत राजा को मरवा दिया गया. राजा का ज्येष्ठ पुत्र उस समय राज-काज सँभालने के लिए बहुत छोटा था. इस लिए राजमाता के संरक्षण में एक वफादार वजीर को गद्दी पर बैठाया गया. किन्तु जब लगा की वह वजीर राज-खानदान की निष्ठाओं के विरुद्ध जाने का प्रयास कर रहा है तो उसे हटाकर दूसरे एक ऐसे वफादार वजीर को गद्दी दी गयी जो राज-माता की आज्ञा के बिना एक शब्द बोलने की भी हिमाकत ना कर सके.

इस बीच युवराज का लालन-पालन राजसी अंदाज़ में जारी रहा. सभी दरबारी हर महीने-दो-महीने में अपनी निष्ठां सिद्ध करने के लिए युवराज जिंदाबाद और युवराज को गद्दी दो के नारे लगाते रहते थे. वैसे कुछ मूर्ख लोग इसे चाटुकारिता का नाम दे कर बदनाम करने की भी कोशिश करते थे. लेकिन इससे दरबारियों की असीम स्वामी-भक्ति और निष्ठाओं पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था.

अंत में वह दिन आ ही गया. एक विशाल सभा का आयोजन किया गया. राज-खानदान के सभी चाटुकारों - क्षमा कीजियेगा, वफादारों को निमंत्रित किया गया. हमेशा की तरह इकठ्ठा होते ही सबने एक स्वर में यूवराज जिंदाबाद, युवराज को गद्दी दो के नारे लगाने शुरू किये. तभी पृष्ठ से राजमाता का प्रादुर्भाव हुआ, और उन्होंने यह घोषणा की कि युवराज अब अपनी जिम्मेदारियां उठाने को तैयार हैं. अब वह समय आ गया है कि उन्हें बड़ी ज़िम्मेदारी दी जाए. इसके साथ ही उन्होंने युवराज के माथे पर राज-तिलक लगा दिया. सारी सभा में जय-जयकार के नारे गूँज उठे. सारी सभा मारे खुशी पागल हुई जा रही थी. सभी चाटुकार - अरे! एक बार फिर माफ कीजियेगा - वफादार यह बताने में जुट गए कि कैसे उन्होंने वर्षों इस दिन की प्रतीक्षा में काटे हैं, और कैसे युवराज ने यह पद-भार स्वीकार करके देश एवं राष्ट्र पर अभूत-पूर्व उपकार किया है.

इसके बाद युवराज ने सभा को संबोधित करते हुए देश के निर्माण की कसम खायी और सभा युवराज जिंदाबाद के नारों से गूँज उठी.

यह कहानी थी विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की!

बस मैं इसके आगे कुछ और नहीं कहूँगा. कहीं इससे किसीकी धार्मिक भावनाओं को ठेस ना पहुँच जाए!

बस इतना ही कहूँगा - युवराज की जय हो! राज-खानदान का इकबाल बुलंद रहे. (देश का भला हो ना हो, शायद मेरा बुरा होने से बच जाए)

जब मुंह खोलो, जय-जय बोलो,
वरना तिहाड़ का ताला है!

 

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