Agitation
जनतंत्र का का जन्म
सदियों की ठंडी बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है,
दो राह,समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंघासन खाली करो कि जनता आती है.
जनता? हाँ, मिट्टी कि अबोध मूरतें वही,
जाड़े-पाले की कसक सदा रहने वाली,
जब अंग-अंग में लगे सांप हो चूस रहे,
तब भी न कभी मुंह खोल दर्द कहने वाली.
लेकिन, होता भूडोल, बवंडर उठते हैं,
जनता जब कोपाकुल हो भृकुटि चढ़ाती है,
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो,
सिंघासन खाली करो कि जनता आती है.
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हमारा लोकतंत्र
लोकतंत्र है आज देश में,
बाढ़ आ गयी नेता की.
नेताओं की बाढ़ देख,
याद आती द्वापर-त्रेता की.
राम और कृष्ण नहीं,
याद आते हैं रावण और शकुनी मामा.
मातृभूमि का हर के चीर,
दुशाशन करता हंगामा.
कुरुक्षेत्र था एक बस तभी,
आज हुआ देश व्यापी.
रुधिर बहा करता गलियों में,
जिसे देख जनता काँपी.
चुनाव होता है आज इस तरह,
यूं जनता ने वोट दिए,
चुनना था जनता को इनमें
किसने सबसे कम खून किये!
अभिनेता बने हैं नेता आज,
नेता अब अभिनय करते हैं,
अभिनय-नीति का फर्क मिटा यूं,
खाई मिति नेता और अभिनेता कि.
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